नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

एक सियार का दर्द


जैसा कि रोज का नियम था आज सुबह भी मैं घूमने निकला तो मुख्या सड़क छोड़कर पगडंडियों कि तरफ निकल गया. सुबह कि ताज़ी खुशगवार हवा का आनंद लेते हुए कुछ कदम ही चला था कि अचानक एक सियार से मेरा साक्षात हो गया, कुछ पल के लिए तो मैं भयभीत सा हो गया क्योंकि मैने सुन रखा था कि दो-चार सियार एक साथ मिलकर एक अकेले आदमी का तीया-पांचा कर सकते हैं, तो कुच्छ पल के लिए मैं घबराया मगर एक बात ने मुझे काफी राहत पहुंचाई, वह यह कि सियार बिलकुल अकेला था.
कुछ पल तो हम दोनों एक-दूसरे को देखते ही रह गए. मेरी तन्द्रा सियार ने ही भंग की. पहले तो उसने इधर-उधर निगाह दौड़ाई फिर उत्सुकतावश मेरी तरफ देखने लगा. उसकी भाव-भंगिमा से ऐसा आभास हो रहा था मानो वह अपनी व्यथा-कथा मुझे सुनाना चाहता हो.
होता आमतौर पर यह था कि सियार पहले भी मुझे आते-जाते कहीं ना कहीं मिलते थे पर ऐसा पहली बार हो रहा था कि सियार मेरे सामने जरा भी डरे या विचलित हुए उत्सुक नजरों से देखता खड़ा था.

अब मेरे मन में भी उत्सुकता पैदा हुई कि पहले तो सियार सामना होते ही डरकर अगल-बगल हो जाया करते थे पर इस सियार को आज यह क्या हो गया है कि मुझसे किनारा करने कए बजाय मुझसे कुछ कहने को उत्सुक दिख रहा है. मैंने मन ही मन सोचा कि चलो देखा जाए बात क्या है.
मै सियार कि तरफ बढ़ा. सियार जैसे अचानक नींद से जगा हो, मुझे अपनी तरफ बढ़ते देख वह घबराया और अपनी आदत के मुताबिक भागने कि मुद्रा बनाता दिखा तो मैंने उसे रोकते हुए कहा “अरे सियार भाई जरा रुको तो सही मुझे तुमसे कुछ बात करनी है. यह सुनकर सियार जरा ठिठका लेकिन फिर भागते हुए बोला
“नहीं आदमी भाई मैं आपसे बात नहीं कर सकता क्योंकि मेरी जान को खतरा हो सकता है".
 मैंने विस्मित होते हुए पूछा कि
“क्यों भाई तुम्हारी जान को किससे खतरा हो सकता है"
यह सुनकर सियार बोला
“मुझे आदमियों से ही खतरा है और चूंकि तुम भी एक आदमी ही हो इसलिए मैं कह सकता हूँ कि मुझे तुमसे भी खतरा है!"
 मुझे तो अभी तक मालूम ही नहीं था कि सियारों को आदमी से भी कोई खतरा हो सकता है! इसलिए मैनें सियार से पूछा कि
“हम आदमियों से तुम्हें क्या खतरा है? जरा खुलकर बताओ! फ़िलहाल मैं तुम्हें आश्वस्त करता हूँ कि तुम्हे मुझसे कोई खतरा नहीं है इसलिए जरा रुको और बताओ कि तुम्हारी परेशानी क्या है?"
 "और मुझे यह भी लग रहा है कि तुम मुझसे कुछ कहना चाहते थे! तो सारी बातें खुलकर कहो."
मेरी तरफ से ऐसा आश्वासन पाकर सियार कुछ आश्वस्त होता नजर आया. वह मेरे थोडा और नजदीक आकर रुक गया, फिर एक गहरी सांस लेकर बोला,
"क्या बताऊँ! कुछ समझ ही नहीं आता कि तुमसे क्या कहूं?" सियार कि बातें सुनकर मुझे लगा कि जरूर यह अपनी कोई पीड़ा या दुःख मुझे बताना चाहता है पर शायद मुझ पर विश्वास नहीं कर पा रहा है फिर भी मैंने कहा कि
"तुम मुझे अक्सर इन पगडंडियों में मिलते रहे हो और मेरा सामना न करके इधर-उधर हो जाते थे. फिर आज क्यूँ खड़े रहे और मुझे ऐसा क्यों लगा कि तुम मुझसे कुछ कहना चाहते हो!"
मेरी बात सुनकर सियार कुछ सोचता हुआ बोला
“हाँ आदमी भाई, मै सचमुच तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ और मैं सिर्फ तुमसे ही कहना चाहता हूँ क्योंकि मैं बहुत दिनों से तुम्हें देखकर महसूस कर रहा था कि तुम दयावान और प्रकृतिप्रेमी लगते हो इसलिए आज तुमसे बात करने कि हिम्मत जुटा पाया हूँ वरना हमारे सियार समाज में तो मनुष्यों से दूर ही रहने कि हिदायत दी हुई है"

सियार कि बातें सुनकर मैनें कहा
“सियार भाई, तुम मुझे ठीक समझ रहे हो अतः तुम मुझ पर विश्वास करके अपनी व्यथा-कथा कह सकते हो"
तब सियार ने कहना शुरू किया
“आदमी भाई, बुरा मत मानना! क्योंकि मैं जो कुछ कहने जा रहा हूँ वह तुम्हारी मानव बिरादरी के खिलाफ ही है. तुम मुझे भले आदमी लगे इसलिए तुमसे कहने की हिम्मत जुटा पाया हूँ"
मैने कहा
“खुलकर कहो, तुम्हे डरने की कोई जरूरत नहीं है"
 सियार ने कहा
“तुम्हें भी मालुम होगा कि हम सियार लोग तुम इंसानों की बस्ती के आस-पास भी रहना पसंद करते हैं और तुम्हें मालूम हो न हो मगर हमने तुम लोगों को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया है, हाँ फायदा जरूर पहुंचाया है. तुम इंसानों की बस्ती के आस-पास जो भी गन्दगी रहती है उसे साफ़ करने में कुछ हद तक हम तुम्हारी मदद ही करते हैं फिर भी तुम आदमी लोग हमें कोई फायदा तो पहुंचा नहीं सकते उलटे हमारा ही सफाया करने पर तुले हुए हो. सियार कि बात सुनकर मैनें कहा कि तुम ऐसा कैसे कह सकते हो कि हम तुम्हारा सफाया करने में लगे हुए हैं? बताओ! क्या तुम्हें कोई आदमी मरना चाहता है या अभी तक किसी को मारा है? सियार ने कहा, नहीं ऐसी बात नहीं है, प्रत्यक्षतः तो ऐसा कुछ भी नहीं है पर अप्रत्यक्ष रूप से तुम आदमी लोग हम वन्य जीवों का बहुत नुकसान कर रहे हो. सबसे पहले तो तुम हमारे निवास स्थान जंगलों को ही काट-काट कर ख़त्म कर रहे हो जिससे हमारे रहने के लिए कोई सुरक्षित स्थान ही नहीं बच रहा है जहाँ पर हम स्वतंत्र रूप से विचर सकें. इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी गलती तुम लोगों ने की है वह ए है कि सारे वातावरण में तुमने जहर घोल दिया है. जिन फैक्ट्रियों, कारखानों को तुम विकास का नाम दे रहे हो वाही हमारे विनाश का कारण बन रहे हैं. तुमने खेतों में उर्वरक और कीटनाशक रुपी जहर फैला दिया है जिसके दुष्प्रभाव से हम लोगों का जीवन बहुत कठिन होता जा रहा है और हमारी सियार जाति सहित कई और वन्य प्राणियों के विलुप्त हो जाने का खतरा पैदा हो गया है. यही सब बातें कहने के लिए मैं काफी दिनों से बेचैन था मगर कोई भला आदमी ना मिलने कि वजह से किसी से कुछ न कह सका. तुमको देखकर पता नहीं ऐसा क्यों लगा कि तुमसे ये सब बातें कही जा सकती हैं.  इसलिए हे भले आदमी, हमारी विनती सुनो और हमें ख़त्म होने से बचने में हमारी मदद करो इतना कहते-कहते ही सियार अचानक रूक गया और बोला “आदमी भाई कोई और आदमी तुम्हारे पीछे तरफ से आ रहा है इसलिए मैं चलता हूँ मगर हमारी समस्यायों पर ध्यान जरूर देना" यह कहकर सियार जंगल की तरफ निकल गया और मैं उसकी कही बातों के बारे में सोचता हुआ अपनी जगह पर ही खडा रह गया.
कृष्ण धर शर्मा

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