नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

सोमवार, 8 जून 2015

बने रहने दो इन्सान ही


मैंने तो साफ़-साफ़ कह दिया आज सबसे
मशीन तो नहीं बन पाऊंगा मैं
मुझे बने रहने दो इन्सान ही
रही बात कमाने-खाने और खिलाने की
तो वह जिम्मेदारी भी निभाऊंगा बखूबी मैं
पाल लूँगा अपना और अपने परिवार का पेट भी
इन्सान बने रहकर ही
खूब हंसो, खूब खिल्ली उड़ाओ मेरी सब मिलकर
मुझे बिलकुल भी बुरा नहीं लग रहा
क्योंकि आपकी अज्ञानता दिख रही है सिर्फ मुझे
आप तो आपने आप को समझ बैठे हैं महान ज्ञानी
तो हे ज्ञानियों क्या आप नहीं जीने देंगे एक इंसान को
इंसान बनकर इस दुनिया में!
क्या आपकी नजर में सफलता की परिभाषा
सिर्फ इतनी सी ही है कि कमाओ ढेर सारे पैसे
भर दो अपना घर कृत्रिम वस्तुओं से
ओढ़ लो लबादा सभ्य-सामाजिक होने का
चाहे भले ही दम घुटता रहे तुम्हारा उस लबादे में
और वही बनाना चाहते तुम मुझे भी
नहीं मैं अब नहीं सुनूंगा तुम्हारी
करूँगा कुछ अपने ही मन की
कौन सा बार-बार मिलता है
यह इंसानों का जीवन
जिऊंगा मैं तो इसे अपने ही ढंग से
करते रहो तुम सब मिलकर विलाप
मुझे तो जीना है खुश रहकर ही
अन्दर से भी और बाहर से भी

                   (कृष्ण धर शर्मा, २०१५)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें