नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

हमारे समाज में हो रहे बदलाव

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आज जिस तरह से हमारे समाज में बदलाव हो रहे हैं ऐसे हालात में अच्छे और बुरे में पहचान करना बहुत ही कठिन कार्य हो गया है.
हमारे इस आधुनिक समाज में पढ़ाई-लिखाई को बहुत महत्व दिया जा रहा है मगर पढ़े-लिखे लोग ही अच्छे लोग हों यह जरूरी नहीं है. बहुत अफसोस की बात है कि हमें जो पढ़ाया जा रहा है वह व्यावहारिक नहीं है और यह किताबी पढ़ाई हमें आदमी से मशीन बना रही है व हमें एक दूसरे के सुख-दुख से दूर करती जा रही है.
हम सभ्य और विकसित होने का दावा तो करते हैं मगर किसी के दुख या परेशानी में शामिल होने के लिये हमारे पास समय नहीं है. हमारे समाज में आज सीधे-सादे और अच्छे लोगों की कोई इज्जत नही होती है और उन्हें परेशान किया जाता है जबकि भ्रष्ट और दुराचारी लोगों का सम्मान किया जाता है.
आज के इस आधुनिक समाज में सादगी और सदाचारी की जगह बनावटी और भ्रष्टाचारी लोगों का का राज है जो जनता के सामने तो सदाचार और नैतिकता की बातें करते हैं मगर पीठ पीछे दुराचार और अनैतिक बातों में लगे रहते हैं.
हम आज जिस आधुनिक समाज में रह रहे हैं वह हमें अपने अधिकारों के बारे में तो हमें बताता है मगर हमें अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक नहीं करता जैसे कि हमारे पूर्वजों ने जो पेड़ लगाये थे उन पेड़ों से हमें शुद्ध और ताजी हवा मिलती है, मीठे फल मिलते हैं और ठंडी छांव मिलती है. हम लोग अपने पूर्वजों के लगाये हुये पेड़ तो अपनी जरूरतों के लिये काट देते हैं मगर अपनी आने वाली पीढ़ी के लिये पेड़ नहीं लगाते जिसकी वजह से आने वाली पीढि़यों को शुद्ध और ताजी हवा, मीठे फल और ठंडी छांव कैसे मिल पायेगी इसके बारे में हम नहीं सोचते.
आज हमें जरूरत है ऐसी पढ़ाई की जो हमें अपने अधिकारों के बारे में तो पढ़ाये ही और साथ ही हमे अपने कर्तव्यों के बारे में जागरूक भी बनाये जिससे हम पढ़ें-लिखें और साथ में एक अच्छे इंसान भी बन सकें.[कृष्ण धर शर्मा] 

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