नमस्कार,
आज की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में हम-आप बहुत कुछ पीछे छोड़कर आगे बढ़ते जाते हैं. हम अपने समाज में हो रहे सामजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक बदलावों से या तो अनजान रहते हैं या जानबूझकर अनजान बनने की कोशिश करते हैं. हमारी यह प्रवृत्ति हमारे परिवार, समाज और देश के लिए घातक साबित हो सकती है. अपने इस चिट्ठे (Blog) "समाज की बात - Samaj Ki Baat" में इन्हीं मुद्दों से सम्बंधित विषयों का संकलन करने का प्रयास मैंने किया है. आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत रहेगा...कृष्णधर शर्मा - 9479265757

शनिवार, 24 सितंबर 2011

जमींदार की आँखें खुल गई

एक जमींदार महात्माजी को बहुत देर से अपने धन-वैभव की बातें खूब बढ़ा-चढ़ाकर सुना रहा था साथ ही अपने आलीशान महल का  भी बहुत विस्तार से  वर्णन कर रहा था. महात्माजी  जब जमींदार की बड़ाई सुन-सुनकर थक गए तब उन्होंने विश्व का एक नक्शा मगवाया और उससे पूछा-अब बताओ इस नक़्शे में तुम या तुम्हारा महल कहाँ पर है? 
जमींदार नक्शा देखकर परेशान हो गया उस नक़्शे में वह या उसका महल तो दूर उसका प्रान्त भी कहीं नजर नहीं आ रहा था, तब महात्माजी ने भारत का नक्शा मगवाया और जमींदार से फिर वही सवाल किया तब जमींदार ने नक्शा देखकर महात्माजी से कहा इस नक़्शे में तो खाली मेरे राज्य ही नाम है! मेरा तो कहीं पर नाम ही नहीं है?
महात्माजी बोले- देखो जिस धन-दौलत और महल पर तुमको इतना अभिमान है उसका विश्व के नक्शे पर तो क्या तुम्हारे देश के नक़्शे पर ही कोई नामोनिशान नहीं है! फिर किस बात का अभिमान करते हो तुम भला? महात्मा जी की बातें सुनकर जमींदार की आँखें खुल गई और अब वह अपनी बड़ाई छोड़कर लोगों की भलाई के काम में लग गया. 

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